विज्ञान और किसान-दूध की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और ऐसे में डेयरी कारोबार से जुड़े लोगों के सामने इस मांग को पूरा करने की बड़ी चुनौती है। इसको देखते हुए अब डेयरी कारोबार जुड़े लोग स्मार्ट तकनीकों को अपनाने लगे हैं। यह तकनीक ऐसी है।
जिससे न सिर्फ दुग्ध उत्पादन बढ़ता है,गुणवत्ता अच्छी होती है। बल्कि इसके अलावा पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। और पर्यावरण संबंधी जो समस्या है, उसमें भी कमी आती है।
तो आइए जानते हैं क्या है स्मार्ट डेयरी फार्मिंग-
स्मार्ट डेयरी फार्मिंग में डाटा की अहमियत सबसे ज्यादा होती है। खासतौर उसके चारे पोषण गर्भधारण ब्यांत, और दुग्ध उत्पादन की कार्य विधि के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है। यह जानकारी सही समय पर सही फैसले लेने में मदद करते हैं। वहीं दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में भी सहयोग करते हैं। विशेषज्ञ अब इस बात को मानने लगे हैं, की नई तकनीक के बिना निकट भविष्य में दूध की मांग को पूरी करना मुमकिन नहीं होगा।
मॉनिटरिंग के लिए जरूरी सेंसर डिवाइस-
हर पशुओं की स्थिति के बारे में पूरी और सही जानकारी के लिए ऐसी सेंसर डिवाइस जरूरी है। जिससे पशु को पहनाया भी जा सके। डिवाइस पशुओं की गर्दन पूछ या टांग में पहनाई जा सकती है। इस डिवाइस के जरिए पशुओं की बीमारी और दूसरी परेशानियों को सही समय पर पता लगाया जा सकता है।
जिसके बाद समय पर उनका इलाज किया जा सके। समय पर निदान होने से दूध उत्पादन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, और इसी तरह से डिवाइस हमें बताती हैं। कि पशु कैसा व्यवहार कर रहा है, ठीक से सक्रिय है या नहीं। उसका स्वास्थ्य कैसा है कितना आहार खा रहा है।
दूध कितना दे रहा है और प्रजनन की स्थिति क्या है। पशु को इनमें से किसी भी क्षेत्र में परेशानी होने पर समय पर ,उपाय किया जा सकेगा। लेकिन समस्या यह है कि दुनिया भर में ज्यादा दूध उत्पादन छोटे पशुपालक कर रहे हैं। इनके पास पशुपालन के आधुनिक तरीके अपनाने लायक आर्थिक संसाधन नहीं है। यही वजह है की यह नई तकनीक से दूर ही हैं, और पुराने तरीके से काम चला रहे हैं।
स्वचालित मशीनें-
वहीं दूसरी ओर अच्छे फार्म में दूध निकालने की स्वचालित मशीनें मौजूद हैं। इन मशीनों से मजदूरी पर आने वाला खर्च कम हो जाता है। साथ ही मशीन से दूध कम समय में निकल जाता है। स्मार्ट पशु फार्म में स्वचालित पानी और चारा सप्लाई मशीन भी होती है। यह मशीन भी लागत को कम करती है, और काम को ज्यादा सटीक तरीके से करती है। स्मार्ट डेयरी फार्मिंग करीब-करीब दो दशक पुराना है।
भारत के लिए अच्छी बात यह है कि यहां दुधारू पशुओं की तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में मादा पशुओं की कुल संख्या 14 करोड़ पचास लाख से भी ज्यादा है। जो 2012 की तुलना में 18 फीसदी से भी अधिक है। कारोबार के तरीके अब दुनिया भर में बदल रहे हैं। ऐसे में हमारे किसानों को भी बदलाव लाना होगा।
क्या है पशुपालन कैलेंडर-
पशुपालन कैलेंडर का मतलब, निर्धारित अवधिकाल (मौसमी ऋतु) के वर्तमान समय मे चल रही, समस्या को प्रदर्शित करना ही पशुपालन कैलेंडर कहते है। जैसे कि सितंबर महीने में पशुओं में आने वाली समस्या सितंबर माह पशुपालन कैलेंडर कहलाते है।
आइए अब नजर डालते हैं, पशुपालन कैलेंडर पर कि सितंबर माह का कैलेंडर क्या है। सितंबर माह में वातावरण के तापमान में उतार और चढ़ाव के दुष्परिणाम से, पशुओं को बचाने के उपाय पर ध्यान दें।
ऐसे समय में पशुओं को दिन में धूप से बचाएं और पीने के पानी की समुचित व्यवस्था करें। और रात के समय में ठंड से बचाने के लिए छप्पर इत्यादि के नीचे पशुओं को बांध कर रखें। पशुओं को यथासंभव सुखे व ऊंचे स्थानों पर रखें। पशु घर में वर्षा जल निकासी का उचित प्रबंध करें।
पशुओं मे होने वाले रोग-
रक्त परजीवी रोग, जैसे- थाईलेरिया, ट्रिपैनोसोमा, बबेसिया भविष्य इत्यादि वर्षा काल में जन्म लेते हैं। तथा मच्छर, कीट व कीचड़ इत्यादि के द्वारा फैलते है। अतः बाड़े के आसपास गंदा पानी ना रुकने दें। गर्मी व नमी जनित रोगों में मुख्य रूप से Colibacillosis, Salmonellosis कवक जनित रोग है।
इसके अतिरिक्त गलघोटू और लंगडी बुखार फैलने की संभावना भी अत्यधिक रहती है। अतः समय रहते इनके टीके पशुओं में अवश्य लगवाएं अथवा रोग होने पर पशुओं के चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।
चारे की संग्रहण पर विशेष ध्यान दें। नमी के कारण कई फफूंद जनित बीमारी की संक्रमण का खतरा रहता है। हरे चारे से साइलेज बनाएं अथवा हरे चारे के साथ सूखे चारे को मिलाकर खिलाएं। क्योंकि हरे चारे के अधिक सेवन से पशुओं के में दस्त की समस्या हो सकती है।
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