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गन्ने में ड्रिप सिंचाई से बढ़ेगी मिठास, बचेगा पानी।

आज हम आपको जानकारी देंगे कि कैसे पानी की बचत करके आप बढ़ा सकते हैं अपने गन्ने की मिठास। भाइयों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गन्ना हमारी प्रमुख फसलों में से एक है। गन्ने के उत्पादन में हमारा देश दूसरे नंबर पर आता है। लेकिन यह एक ऐसी फसल है। जिसे पानी की काफी मात्रा की आवश्यकता होती है।

लेकिन आप सभी को पता है। भूमिगत जल स्तर धीरे धीरे कम होता जा रहा है। ऐसे में पानी की बचत पर जोर देना अनिवार्य है। ऐसे में यह ट्रिक काम आती है। सूक्ष्म सिंचाई (Micro irrigation system) जिसका इस्तेमाल करके केवल पानी की बचत ही नहीं कर सकते है। बल्कि गन्ने का अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।

सूक्ष्म सिंचाई विधि के लाभ-

तो क्या है सूक्ष्म सिंचाई विधि। और किस तरह इससे आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आइए उस तमाम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

गन्ना लंबी अवधि की फसल है। यही वजह है, कि एक हेक्टेयर की फसल के लिए 125 से 250 सेंटीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है। वहीं दूसरी फसलों की मुकाबले इस फसल में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा लगती है। हमारे देश में ज्यादातर किसान परंपरागत तरीकों से सिंचाई करते आए हैं।

यानी टेब्बुल या नदी नालों के माध्यम से सिंचाई करते चले आ रहे हैं। इससे वाष्पीकरण या रन ऑफ के जरिए हजारों लीटर पानी बेकार हो जाता है। यही वजह है की वैज्ञानिक ड्रिप सिंचाई यानी टपक सिंचाई पद्धति पर जोर दे रहे हैं। गन्ने की फसल में इस सिंचाई पद्धति को आसानी से और कामयाबी के साथ अपनाया जा सकता है।

ड्रिप सिंचाई विधि-

ड्रिप सिंचाई में बारीक पाइप का एक जाल बिछा होता है।इनमें छोटे-छोटे छेद होते हैं। और इन्हीं छेदों से पानी बूंदों के रूप में खेत की सतह पर गिरता रहता है। यानी बूंदों के रूप में टपककर सीधे खेत में जड़ों तक चला जाता है। एक अनुमान के मुताबिक टपक सिंचाई में 70 फ़ीसदी तक पानी की बचत होती है। जरूरी पोषण और उर्वरक भी इन्हीं पाइपों के माध्यम से सीधे जड़ों को दे दिए जाते हैं।

इसके अलावा पपड़ी जमना या जलभराव की समस्या नहीं आती। यानि पानी की एक एक बूंद काम आ जाती है। और उसकी दक्षता ज्यादा होता है। अच्छी क्वालिटी की ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था में सभी पौधों को समान मात्रा में पानी और पोषक तत्व मिल जाते हैं। इस प्रणाली में पानी सिर्फ जड़ों के आसपास ही गीला करता है। और बाकी जमीन सूखी रहती है। जिससे वहां खरपतवार की समस्या नहीं होती है।

इससे यह होता है कि किसान खरपतवार के आने वाले खर्च से बच जाते हैं। ड्रिप सिंचाई वाली गन्ने की फसल के अंत में फसली खेती भी आसानी से की जा सकती है। हालांकि ड्रिप सिंचाई एक बहुत ही खर्चीली प्रणाली है। लेकिन एक बार लगाने के बाद 4 से 5 साल तक काम करती है। ड्रिप सिंचाई लगाने से पहले खेत को जोतकर समतल कर लिया जाता है। इसके बाद ट्रैक्टर चलाकर मशीन की मदद से ड्रिप के लिटरल पाइपों को मिट्टी की सतह पर स्थापित कर दिया जाता है।

पाइपों की दूरी-

पाइपों की दूरी 120 से 150 सेंटीमीटर होती है। इसके बाद मिट्टी में गड्ढा बनाकर रोपाई करते हैं। और पौधों के बीच की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इस पद्धति में एक लेटरल पाईप के ऊपर गन्ने की एक ही कतार लगाई जाती है। गन्ने की रोपाई से पहले खेत को ड्रिप सिंचाई से उचित मृदा जलधारिता की स्थिति आने तक गीला करना चाहिए। जिससे पौधे भी जल्दी स्थापित हो जाता है। और उनकी मृत्यु भी नहीं होती।

गन्ने की रोपाई से लेकर 20 से 30 दिन तक टपक सिंचाई के जरिए, खेत में नमी बनाए रखना बहुत ही जरूरी होता है। इसके बाद फसल की प्रतिदिन 1 घंटे के लिए या 1 दिन के अंतराल के बाद 2 घंटे के लिए टपक सिंचाई करें। इस प्रणाली में आमतौर पर फर्टिलाइजेशन टैंक भी होते हैं।

उसमें उर्वरक को भंडारित किया जाता है। और इंजेक्शन के माध्यम से उर्वरक को पाइप में छोड़ दिया जाता है। इंजेक्शन वेंचुरी उपकरण से दे सकते हैं। जिसमें बिजली की जरूरत नहीं होती। ज्यादा पैदावार और अधिक चीनी रिकवरी के लिए 15 दिनों के अंतराल पर उर्वरक डालें।

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